Monday 10 July 2017

मेरे होने का एहसास नहीं है। पर वो दिन क्या ख़ास नहीं है। कविता बेटी बचाओ पर

बेटी बचाओ पर विशेष कविता

बेटी बचाओ
मेरे होने का एहसास नहीं है।
पर वो दिन क्या ख़ास नहीं है।
जिस दिन मैं घर आई थी।
मम्मी तो मुस्कुराईं थी।
पापा भी चहक उठे थे।
पर फिर क्यों दुनिया ने नहीं दी बधाई थी।
लड़की हुई है ये सुनकर सबके मुह उतर गए।
बधाई देने वालो के शब्द क्यों तानो में बदल गए ।
लड़की हूँ मैं बोझ नहीं किस किस को समझाऊं मैं।
लड़को से हूँ कम नहीं क्यों तुमको बतलाऊ मैं।
भूल गए हो तुम सब शायद लड़की से है ये जग सारा।
तुम ना होते आज अगर माँ ने न होता तुमको 9 महीने कोख में पाला।
तो क्यों खुश नहीं होते हो तुम लड़की के होने पर ।
क्यों कुछ मासूमों को मार देते हो उनके होने पर।
उनका क्या कसूर उनको भेजा है इस जग में भगवान् ने।
तुम कोन होते हो, ये फैसला करने वाले के हम रहेंगे या नहीं इस संसार में।
लड़की से ही तुम भी हो , लड़की से है ये जग सारा।
कद्र करो और समानता लाओ। कहीं हो न जाए बंजर जग सारा।
– आँचल वर्मा


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